करोड़ों की योजनाएं बनने के बाद भी उत्तर प्रदेश में गाय कूड़ा खाने को मजबूर

रीना त्रिपाठी की कलम से
लखनऊ । गाय को मां कहकर सर्वोच्च सम्मान देने वाले हम भारतीय परंपरा के वंशज, गाय माता और उसके वंश को कूड़े के ढेर में गन्दगी और पन्निया खाते देखने को मजबूर

जी हां अनगिनत सरकारी योजनाएं होने के बाद भी सड़क पर गाय और गोवंश कूड़े के ढेर में पन्नियां तथा कूड़ा खाकर अपना पेट भरने को मजबूर हैं। 
         सुबह हो या  दिन भर में कभी भी सड़क के किनारे फैले हुए कूड़े के ढेर के बगल से आप गुजर कर देखिए आपको वहां पर खाने की तलाश में पन्नियां खाती हुई और कूड़े को खाती हुई गाय दिख जाएगी।
            गोपालन के नाम पर सरकार ने बड़ी-बड़ी योजनाएं और फंड निर्धारित किए। गोपालको ने बड़ी-बड़ी समितियां बनाकर गोवंश पालन के नाम पर, उन्हें रखकर उनकी सेवा करने के नाम पर करोड़ों रुपए योजनाओं हासिल कर लिए हैं, फिर इस तरह की योजनाएं क्या सिर्फ कागज में ही दिखाई देती हैं? क्योंकि गाय तो आज भी समय पर घूम कर अपना पेट भरने और कूड़ा खाने को मजबूर है।
              पिछले कई वर्ष से किसान भी अपनी फसलों को लेकर चिंतित रहें क्योंकि गोवंश उनके खेतों में पहुंचकर उसे नष्ट करते देखे गए थे। आपके और हमारे मोहल्ले में कई बार अभियान चला और नगर निगम आवारा पशुओं को छोड़कर डेयरी चलाने वाले लोगोंके जानवरों को पकड़कर ले गएऔर मोटी रकम लेकर बाद में उन्हें छोड़ देते । आवारा पशुओं की रफ्तार से दूर पहले के जैसे ही रही, जो गाहे-बगाहे सड़क में चलने वाले लोगों के लिए मुसीबत नहीं बने।      
              बड़े-बड़े आश्रम और बाड़े बनाए गए जहां सड़क में छुट्टा घूम रहे पशुओं को रखने की व्यवस्था थी। बड़े-बड़े ठेकेदारों ने करोड़ों की ठेके लिए गोवंश की रक्षा के नाम पर .... सारा खेल सिर्फ और सिर्फ कागजों पर और बड़ी बड़ी तिजोरियों तक सीमित रहा। गाय और गोवंश के हिस्से में आया सिर्फ कूड़ा करकट और सड़कों में मारे मारे घूमने का दर्द या बड़े-बड़े अस्थाई बाड़ों में पानी और खाने के अभाव में घुट कर मर जाने का दर्द।
      अगर देखा जाए तो क्या आम नागरिकों की कोई जिम्मेदारी गो वंश की सेवा के लिए नहीं बनती....? निश्चित रूप से आप करेंगे बनती तो है इसकी शुरुआत हम सब अपने घरों की पहली रोटी गाय के लिए बनाकर और दिन भर में किसी एक गाय को हरा चारा खिलाकर उसका पेट भरने का संकल्प  ले कर  सकते हैं ।माना कि आज सरकारें सिर्फ योजनाओं को बनाने और उन्हें कागज के बड़े गठरी में बंद करके रखने तक सीमित हो गई हैं फिर भी हम सब मिलकर सरकार को इस प्रकार की गतिविधियों से आगाह करें, की कागजी कार्यवाही के सिवा वास्तव में कुछ ऐसा करें कि हमारे गाय और उनका वंश कूड़ा खाने और वहां फैली पन्नियो और गंदगी को खाने पर मजबूर ना हो।
             उत्तर प्रदेश में पिछले कई वर्षों से छुट्टा गायें मुद्दा बनी हुई हैं। इसके लिए योगी सरकार ने गांवों में गोशालाएं खुलवाई, लाखों गायों को इनमें रखा गया, लेकिन समस्या खत्म नहीं हुई। समस्या को देखते हुए सरकार ने लोगों से कहा कि वो गाय पालें और उसका खर्च सरकार उठाएगी लेकिन सरकार की यह योजना भी जमीनी स्तर पर विफल नज़र होती दिखती है।
              आज मॉर्निंग वॉक पर जाते त्रिवेणी मिश्रा जी ने बहुत ही मार्मिक  तस्वीर खींचकर मुझे भेजी है बिजली पासी किले की बगल की रोड़ में एक कूड़े के ढेर पर कई गाय खड़ी है और साथ में है मॉर्निंग वॉक पर जाते हुए ऑल इंडिया पावर फेडरेशन के चेयरमैन शैलेंद्र दुबे, जो अपनी जेब में रोज एक रोटी रखकर ले जाते हैं और एक गाय को खिलाते हैं। 
            तस्वीर देखकर सुकून तो हुआ पर संतुष्टि नहीं मिली क्योंकि एक रोटी और एक गाय से सभी गायों का कल्याण नहीं हो सकता पर यदि हम सब सुबह मॉर्निंग वॉक करने वाले लोग यह सोचने की हमें एक रोटी लेकर जानी है तो क्या यह सब गाय और उनका वंश कूड़ा करकट और मैला खाने से बचाया नहीं जा सकता है????
                जिन कामों में सरकार विफल रही हो क्या उन्हें जन आंदोलन नहीं बनाया जा सकता।???????
            सोचिए यदि सरकारी योजनाएं सक्षम और सफल है तो फिर कूड़े के ढेर में गोवंश क्यों?????
विचार करें ,मनन करें अगर समस्या है तो समाधान भी आपके पास ही है।


एडिटर- आदर्श शुक्ला
9454850936

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