पुरिखन ते सुनी कहानी, नागेन्द्र सिंह की जुबानी
पुरिखन ते सुनी कहानी, नागेन्द्र सिंह की जुबानी
लखनऊ।
कोरोना महामारी और लॉकडाउन के इस संकट काल में बख़्शी का तालाब के समाजसेवी नागेन्द्र बहादुर सिंह चौहान विगत कुछ दिनों से फेसबुक पर बच्चों को अवधी कहानियां सुना रहे हैं। वह रोज शाम साढ़े 5 बजे एफबी पर लाइव होकर बड़े ही रोचक ढंग से नानी-नाना व दादी-दादा की कहानियों को सुनाते हैं। उनकी इन अवधी भाषा की कहानियों को भारत में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भारत वासी सुनते हैं।
नागेन्द्र ने बताया कि वह विगत 22 अप्रैल से प्रतिदिन फेसबुक पर लाइव होकर अवधी कहानी सुना रहे हैं। अबतक वह रामसुख कय खिचरी, बकरेऊ कय भूख, शेरऊ कय बाप, मामा अउ दुई भांजे, सिरकिया पहलवान, ढोलक तौ चलि ठुममुक ठुममुक, सियार कय दोस्ती व लड़हिया लयगै चील आदि अवधी कहानियां फेसबुक पर सुना चुके हैं। नागेन्द्र बताते हैं कि यह सारी कहानियां उन्होंने अपने बाबा, दादा, नाना व नानी से 40-42 साल पहले सुनी थीं। वह बचपन में सुनी कहानियों को ही अभी सुना रहे हैं।
समाजसेवी चौहान कहते हैं कि अभिभावकों में जिंदगी की भागदौड़, बच्चों पर पढ़ाई का बोझ और स्मार्ट मोबाइल फोन आदि ने जाने कब कहानी कहने-सुनने का दौर हड़प लिया। अब तो परिवार के सभी सदस्य एक साथ भोजन तक नहीं करते हैं। पूरे परिवार का एक जगह बैठना, बातें करना, हंसी-ठिठौली करना और कहानी कहना-सुनना इत्यादि गुजरे जमाने की बातें हो गईं। शायद इसी वजह से लोग तनावग्रस्त हो रहे हैं। परिवारिक स्नेह कम हो रहा है। लोग एकाकी होकर चिड़चिड़े हो रहे हैं।
उन्होंने बताया कि कोरोना जैसी वैश्विक महामारी ने परिवार को एक साथ घर में ही रहने का अवसर दिया है। परंतु, इस मौके पर भी मियां-बीवी में झगड़े हो रहे हैं। स्मार्ट फोन और टीवी होने के बावजूद बच्चे, बड़े, बूढ़े सब बोर रहे हैं। ऐसे में कहानियों की संजीवनी बड़ी कारगर हो सकती है। घरों में ज्ञानवर्धक, मनोरंजक, साहसिक कहानियों का दौर एक बार फिर शुरू होना चाहिए। तब पूरा परिवार कहानी सुनने के बहाने कम से कम एक घन्टे प्रतिदिन एक साथ बैठेगा।
नागेन्द्र ने बताया कि उन्होंने इन्हीं बातों को ध्यान में रखकर लॉकडाउन पीरियड में पुरानी अवधी कहानियों को सुनाने का सिलसिला शुरू किया है। देश-विदेश के सैकड़ों लोग रोज उनकी कहानी सुनते हैं। इन कहानियों में लोगों को खूब आनन्द आ रहा है। उनके पास रोज तमाम फोन और मैसेज भी आते हैं। उन्हें कई लोगों ने बताया कि वे लोग सपरिवार एक जगह बैठकर अवधी कहानी सुनते हैं। इसी क्रम में कल शाम पेरिस से एक फोन आया था। भारतीय दूतावास, पेरिस में कार्यरत एक अधिकारी की पत्नी अज़रा अहमद ने फोन पर बताया कि 'मैं उन्नाव (उत्तर प्रदेश, भारत) की मूल निवासी हूँ। मैं आपकी अवधी कहानियों को रोज अपने दोनों बच्चों व पति के साथ सुनती हूँ। कहानी सुनते-सुनते हम सब अपने गांव-घर पहुंच जाते हैं।
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रिपोर्ट- संतोष कुमार
9450260052
लखनऊ।
कोरोना महामारी और लॉकडाउन के इस संकट काल में बख़्शी का तालाब के समाजसेवी नागेन्द्र बहादुर सिंह चौहान विगत कुछ दिनों से फेसबुक पर बच्चों को अवधी कहानियां सुना रहे हैं। वह रोज शाम साढ़े 5 बजे एफबी पर लाइव होकर बड़े ही रोचक ढंग से नानी-नाना व दादी-दादा की कहानियों को सुनाते हैं। उनकी इन अवधी भाषा की कहानियों को भारत में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भारत वासी सुनते हैं।
नागेन्द्र ने बताया कि वह विगत 22 अप्रैल से प्रतिदिन फेसबुक पर लाइव होकर अवधी कहानी सुना रहे हैं। अबतक वह रामसुख कय खिचरी, बकरेऊ कय भूख, शेरऊ कय बाप, मामा अउ दुई भांजे, सिरकिया पहलवान, ढोलक तौ चलि ठुममुक ठुममुक, सियार कय दोस्ती व लड़हिया लयगै चील आदि अवधी कहानियां फेसबुक पर सुना चुके हैं। नागेन्द्र बताते हैं कि यह सारी कहानियां उन्होंने अपने बाबा, दादा, नाना व नानी से 40-42 साल पहले सुनी थीं। वह बचपन में सुनी कहानियों को ही अभी सुना रहे हैं।
समाजसेवी चौहान कहते हैं कि अभिभावकों में जिंदगी की भागदौड़, बच्चों पर पढ़ाई का बोझ और स्मार्ट मोबाइल फोन आदि ने जाने कब कहानी कहने-सुनने का दौर हड़प लिया। अब तो परिवार के सभी सदस्य एक साथ भोजन तक नहीं करते हैं। पूरे परिवार का एक जगह बैठना, बातें करना, हंसी-ठिठौली करना और कहानी कहना-सुनना इत्यादि गुजरे जमाने की बातें हो गईं। शायद इसी वजह से लोग तनावग्रस्त हो रहे हैं। परिवारिक स्नेह कम हो रहा है। लोग एकाकी होकर चिड़चिड़े हो रहे हैं।
उन्होंने बताया कि कोरोना जैसी वैश्विक महामारी ने परिवार को एक साथ घर में ही रहने का अवसर दिया है। परंतु, इस मौके पर भी मियां-बीवी में झगड़े हो रहे हैं। स्मार्ट फोन और टीवी होने के बावजूद बच्चे, बड़े, बूढ़े सब बोर रहे हैं। ऐसे में कहानियों की संजीवनी बड़ी कारगर हो सकती है। घरों में ज्ञानवर्धक, मनोरंजक, साहसिक कहानियों का दौर एक बार फिर शुरू होना चाहिए। तब पूरा परिवार कहानी सुनने के बहाने कम से कम एक घन्टे प्रतिदिन एक साथ बैठेगा।
नागेन्द्र ने बताया कि उन्होंने इन्हीं बातों को ध्यान में रखकर लॉकडाउन पीरियड में पुरानी अवधी कहानियों को सुनाने का सिलसिला शुरू किया है। देश-विदेश के सैकड़ों लोग रोज उनकी कहानी सुनते हैं। इन कहानियों में लोगों को खूब आनन्द आ रहा है। उनके पास रोज तमाम फोन और मैसेज भी आते हैं। उन्हें कई लोगों ने बताया कि वे लोग सपरिवार एक जगह बैठकर अवधी कहानी सुनते हैं। इसी क्रम में कल शाम पेरिस से एक फोन आया था। भारतीय दूतावास, पेरिस में कार्यरत एक अधिकारी की पत्नी अज़रा अहमद ने फोन पर बताया कि 'मैं उन्नाव (उत्तर प्रदेश, भारत) की मूल निवासी हूँ। मैं आपकी अवधी कहानियों को रोज अपने दोनों बच्चों व पति के साथ सुनती हूँ। कहानी सुनते-सुनते हम सब अपने गांव-घर पहुंच जाते हैं।
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रिपोर्ट- संतोष कुमार
9450260052

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